स्मृति
मैं कितनी बार झपकियाँ लेता हूँ
उब कर इन खाली उनींदी दोपहरों से –
शाम भी हो आती है,
दिन मग़र डूबता ही नहीं!
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मैं जागता ही रहता हूँ रात-रात भर
डूब जाता हूँ अँधेरे में –
रात भी सो जाती है,
चाँद मग़र ऊबता ही नहीं!
एक कैमरे ने मुझे क़ैद करने की कोशिश की तो मैं मुसकुरा भर दिया,
उसे क्या पता के मुझे तो न जाने कब से, उनकी नज़रों ने क़ैद कर रखा है...
सुन्दर अभिव्यक्ति ….
Bahut Khoob!
very beautiful 🙂