तुम्हारी याद
एक बार फिर सब्र का बाँध टूट गया !
बारिश हुई,
काले मेघ बिखर गए !
आसमान नीला है फिर से
बिलकुल साफ़;
हाँ मगर, छत गीली है !
ऐसा ही होता है
तुम गए हो जबसे –
कभी बादलों भरा आकाश
तो कभी गीली छत,
और धीमी साँसों के बीच सरकती
कमबख्त यह रात !