अक्टूबर 26th, 2010 के लिए पुरालेख

तुम्हारी याद

एक बार फिर सब्र का बाँध टूट गया !

बारिश हुई,

काले मेघ बिखर गए !

आसमान नीला है फिर से

बिलकुल साफ़;

हाँ मगर, छत गीली है !

ऐसा ही होता है

तुम गए हो जबसे –

कभी बादलों भरा आकाश

तो कभी गीली छत,

और धीमी साँसों के बीच सरकती

कमबख्त यह रात  !