एक लम्बी कविता का अंत
न जाने अंत कभी कर पाऊं
या नहीं;
सो समाप्त कर देता हूँ –
आरम्भ से पहले ही –
यहीं !
न जाने अंत कभी कर पाऊं
या नहीं;
सो समाप्त कर देता हूँ –
आरम्भ से पहले ही –
यहीं !
एक कैमरे ने मुझे क़ैद करने की कोशिश की तो मैं मुसकुरा भर दिया,
उसे क्या पता के मुझे तो न जाने कब से, उनकी नज़रों ने क़ैद कर रखा है...
Zaroor ant kar paoge, aur ek khoobsurat ant.
Faithful Reader.
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Thank You… It does… There is a like option if one clicks on individual posts.. 🙂